One Nation One Election : भारत सरकार ने ‘एक देश, एक चुनाव‘ की योजना को आगे बढ़ाने के लिए कोविंद समिति की रिपोर्ट को मंजूरी दी है। इसका उद्देश्य लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराना है। यह योजना देश में राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता लाने के लिए बनाई गई है। लेकिन इसे लागू करने के लिए संविधान में कुछ अहम बदलाव जरूरी होंगे।
क्या है ‘एक देश, एक चुनाव‘ की बहस?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले 2019 में ‘एक देश, एक चुनाव‘ की बात उठाई थी। इस विचार का मुख्य उद्देश्य यह है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हों। वर्तमान में ये चुनाव अलग–अलग समय पर होते हैं, क्योंकि राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल अलग–अलग समय पर समाप्त होता है। इससे प्रशासनिक और आर्थिक रूप से देश पर बोझ बढ़ता है।
आर्थिक कारणों से एक साथ चुनाव की मांग
2018 में विधि आयोग की एक मसौदा रिपोर्ट में बताया गया था कि अगर देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं, तो सरकार का खर्च 50% तक कम हो सकता है। चुनाव आयोग के अनुसार, 2014 के लोकसभा चुनाव में कुल खर्च 35.86 अरब रुपये था। इसके अलावा, राज्य चुनावों पर भी लगभग इतना ही खर्च हुआ था। अगर दोनों चुनाव एक साथ होते, तो यह खर्च कम हो सकता था।
संविधान में जरूरी बदलाव
‘एक देश, एक चुनाव‘ लागू करने के लिए संविधान के कई अनुच्छेदों में संशोधन करना होगा:
- अनुच्छेद 83: संसद के सदनों की अवधि से संबंधित है। इसे बदलना होगा ताकि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकें।
- अनुच्छेद 85: राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा को भंग करने से संबंधित है। इसमें संशोधन के बिना एक साथ चुनाव संभव नहीं हो सकता।
- अनुच्छेद 172: राज्य विधानसभाओं की अवधि से संबंधित है। इसे बदलने से राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल संसद के साथ मेल खा सकेगा।
- अनुच्छेद 174: विधानमंडलों के विघटन से संबंधित है। इसमें संशोधन करके राज्यों के चुनावों को लोकसभा चुनावों के साथ जोड़ना होगा।
- अनुच्छेद 356: राष्ट्रपति शासन से संबंधित है। इसे भी बदला जाएगा ताकि राज्यों में राष्ट्रपति शासन की स्थिति में चुनाव की तारीखें प्रभावित न हों।
सुप्रीम कोर्ट और विधि आयोग की राय
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एके सीकरी ने कहा था कि ‘एक देश, एक चुनाव‘ नई धारणा नहीं है। 1952 से 1967 तक भारत में चार आम चुनाव और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे। इसके बाद राज्यों में राजनीतिक अस्थिरता और संविधान की धारा 356 के प्रयोग के कारण यह व्यवस्था टूट गई।
समिति की सिफारिशें
राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने सुझाव दिया है कि ‘एक देश, एक चुनाव‘ को दो चरणों में लागू किया जाए:
- पहला चरण: लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं।
- दूसरा चरण: लोकसभा चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाएं।
क्या है राजनीतिक दलों का रुख?
इस प्रस्ताव का कई राजनीतिक दलों ने समर्थन किया है, जबकि विपक्ष ने इसका विरोध किया है। कांग्रेस ने इसे गैर–व्यावहारिक बताया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि लोकतंत्र में ऐसी योजना काम नहीं कर सकती, जबकि भाजपा इसे जरूरी बता रही है।
निष्कर्ष
‘एक देश, एक चुनाव‘ देश के प्रशासनिक और आर्थिक भार को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। लेकिन इसे लागू करने के लिए संविधान में व्यापक बदलाव की जरूरत होगी, साथ ही राजनीतिक सहमति भी अनिवार्य है।